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कहीं मुखिया विहीन होने के चलते सेंचुरी पार्क और टौंस वन प्रभाग में तो नहीं हैं वन्यजीव अंगों के तस्करों के हौसले बुलंद?

“विभाग में अधिकारियों की कमी के चलते ऐसी स्तिथि बनी है, जल्द ही सेंचुरी पार्क और टौंस वन प्रभाग में व्यवस्था कर मुखिया की तैनाती करा दी जाएगी”।– सुबोध उनियाल, वन मंत्री उत्तराखण्ड सरकार।

पुरोला uttarkashi,, क्योंकि, जब गोविंद वन्यजीव राष्ट्रीय उद्यान (सेंचुरी पार्क) का चकराता से तो टौंस वन प्रभाग का संचालन हो रहा है उत्तरकाशी से, तो ऐसे में कैसे लगेगी वन्यजीव तस्करों पर लगाम? जिसका जीता जागता उदाहरण पुरोला में स्पेशल टास्क फोर्स (STF) द्वारा पकड़े गए जनपद उत्तरकाशी के मोरी तहसील के दूरस्थ गांव गंगाड के तस्कर (गोविंद वन्यजीव राष्ट्रीय उद्यान) का है। इतना ही नहीं मामले की भनक गोविंद वन्यजीव राष्ट्रीय उद्यान के आला अधिकारियों/कर्मचारियों को थी ही नहीं, वन्यजीव तस्करी की सूचना उत्तराखंड एसटीएफ को दिल्ली से “वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो” (WCCB) द्वारा मिली। उसके बाद एसटीएफ ने पुरोला पुलिस के साथ संयुक्त टीम बनाकर तस्कर को दबोचा। वन विभाग को भनक तब लगी जब एसटीएफ ने टेस्टिंग के लिए बुलाया। इससे सेंचुरी पार्क का पूरा स्टाफ सवालों के घेरे में है?

आपको बताते चलें कि प्रभारी डीएफओ, डीपी बलूनी टौंस वन प्रभाग के साथ देख रहे हैं प्रभागीय वनाधिकारी जिला उत्तरकाशी का अतरिक्त कार्यभार। जिसके चलते वह अधिकांश समय जिला मुख्यालय में ही रहते हैं, पुरोला आना कम ही होता है। जिस कारण काम भी प्रभावित हो रहे हैं? दूसरी ओर डीएफओ चकराता वन प्रभाग (IFS) अभिमन्यु सिंह को मिली है, सेंचुरी पार्क के उपनिदेशक की अतरिक्त जिम्मेदारी। उनका पुरोला आना–जाना होता ही नहीं है, वह फाइलों पर चकराता/विकासनगर में ही साइन करते हैं, वर्क लोड ज्यादा होने के चलते मुखिया के बराबर डिविजन में न बैठने से अधिकारियों और कर्मचारियों का रहता है, ड्यूटी के प्रति ढुलमुल रवैया। साथ ही अधिकारी/कर्मचारी वर्दी पहनने से भी इतराते हैं। जबकि वर्दी का आमजन में खौफ ही खाफी होता है।

ज्ञातव्य हो वन्यजीवों/वनों की सुरक्षा की दृष्टि से तीनों डिविजन (चकराता/सेंचुरी पार्क व टौंस वन प्रभाग) हैं, संवेदनशील, बीते दिनों चकराता/टौंस वन प्रभाग में सामने आए थे हरे पेड़ों के अवैध पातन के मामले? दूसरी ओर पिछले 15 दिनों के अंदर टौंस वन प्रभाग/सेंचुरी पार्क में तेंदुए की 3 खाल की तस्करी के सामने आ चुके हैं मामले। जिससे वन्यजीव तस्करी का कारोबार फल-फूलने की आशंका? इतना ही नहीं लगातार घटती रहती है, वन्यजीव/मानव संघर्ष की घटनाएं। इससे बावजूद शासन/प्रशासन ने दोनों डिविजनों (टौंस वन प्रभाग/सेंचुरी पार्क) को मुखिया विहीन बनाकर कर रखी है अनदेखी!

वहीं सूत्रों के अनुसार हाल ही के दिनों हरिद्वार में पकड़े गए क्षेत्र के युवक के पास मिली तेंदुए की खाल भी गंगाड से ही करीब 2/3 साल पहले देहरादून पहुंची थी। अब सबसे बड़ा सवाल है, कि जिस गोविंद वन्यजीव राष्ट्रीय उद्यान में हर वर्ष वन्यजीवों के संरक्षण के लिए करोड़ों खर्च किए जाते हैं। आखिर वहां वन्यजीवों की हत्या हुई कैसे? तस्कर तेंदुए की खाल को लेकर पुरोला कैसे पहुंचा? क्या उस दौरान बैरियरों  पर तैनात स्टाफ घोर निद्रा में सो रखा था? जिससे सेंचुरी पार्क में तैनात स्टाफ की कार्यशैली सवालों के घेरे में है? क्योंकि तेंदुए के खालों की तस्करी ‘गोविंद वन्यजीव राष्ट्रीय उद्यान’ के अंतर्गत गंगाड़ गांव से हुई। अब सवाल उठता है कि? पुरोला में पकड़ा गया तस्कर आखिर (गंगाड़ से पुरोला करीब 80 km की दूरी तय करते समय वन विभाग के ( 2 सेंचुरी पार्क के ‘सांकरी/नैटवाड़’) और 2 टौंस वन प्रभाग के मोरी/जरमोला बेरियारों से कैसे बच निकला, क्या वहां चैकिंग केवल खानापूर्ति के लिए की जाती है? और तो और वन्यजीव अंगों की तस्करी मामले की भनक वन विभाग को राजधानी दिल्ली (WCCB) की सूचना पर एसटीएफ की कार्यवाही के बाद लगती है। जिससे ऐसे अपराधों का बढ़ना सेंचुरी पार्क में तैनात स्टाफ द्वारा लापरवाही से ड्यूटी करना (कर्तव्यों का निर्वहन अच्छे से न करना) प्रतीत होता है। साथ ही राज्य सरकार की अतिसंवेदन सील वन प्रभागों को मुखिया विहीन रख कर अनदेखी को दर्शाता है!

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