पुरोला uttarkashi,, पोरा गांव में 11 देव डोलियों के सानिध्य में आयोजित तीन दिवसीय श्री कपिल मुनि खंडासुरी महाराज के नव निर्मित मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में उमड़ा सैलाब। प्राण प्रतिष्ठा के लिए 27 नवंबर से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ चल रहे धार्मिक अनुष्ठान के तीसरे दिन शुक्रवार को पूजा–अर्चना के बाद मंदिर पर शिखाबंधन किया गया। जिसके बाद प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम संपन्न हो गया। उसके बाद कपिल मुनि खंडासुरी महाराज मंदिर में विराजमान हो गए हैं। उसके बाद कार्यक्रम में आई देव डोलियों की विदाई की गई। कार्यक्रम में तीनों दिन विशाल भंडारे का आयोजन भी किया गया था।
कार्यक्रम आयोजन समिति के संरक्षक डा राधेश्याम बिजल्वाण,अध्यक्ष कुलदीप बिजल्वाण, सचिव आनन्द बिजल्वाण, कोषाध्यक्ष रोशन लाल बिजल्वाण, चन्द्र भूषण बिजल्वाण ने बताया कि अनुष्ठान में कपिल मुनि महाराज, खंडासूरी महाराज, डूंडा काश्मीरा, काली माता, राजा रघुनाथ गैर बनाल, ओडारू–जखंडी कुमोला, समेश्वर महादेव फते पर्वत, भद्रकाली पौंटी, जमदग्नि ऋषि थान गांव, खलाड़ी पुजेली से शिकारू नाग, सोमेश्वर देवता राना गीठ देव डोलियों के सान्निध्य में धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न हुआ है। बताया कि मंदिर का निर्माण कार्य वर्ष 2021 में शुरू हुआ था, जो की करोड़ों की लागत से तैयार हो गया। मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष त्रिलोक बिजल्वाण, सचिव नवीन बिजल्वाण हैं और मंदिर के मुख्य कारपेंटर सुरेंद्र शाह/विपिन शाह है।
ये रहे उपस्थित : जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण, भाजपा जिलाध्यक्ष सतेंद्र सिंह राणा, पूर्व नगर अध्यक्ष हरिमोहन नेगी, पूर्व विधायक मालचंद, सुदामा बिजल्वाण, संपूर्णा नन्द बिजल्वाण, पन्ना लाल बडोनी, जय प्रकाश बडोनी, डा राधेश्याम बिजल्वाण, चंद्र भूषण बिजल्वाण, डॉ कपिल देव रावत, राजपाल पंवार, राजपाल रावत, बिहारी लाल शाह सहित कई गणमान्य लोग सहित हजारों की तादाद में अन्य लोग रहे।
पोरा की ध्याणियों ने महाराज को भेंट किया सोने का छत्र ,चांदी की डांगरी, चांदी की मूर्ति : गुरुवार को पोरा की ध्याणियों ने कपिल मुनि खंडासुरी महाराज को ध्याणी मिलन समारोह में पहुंचकर अपने इष्ट देव को सोने का छत्र ,चांदी की डांगरी, मूर्ति, चांदी का भेंट किया है। उसके बाद रासों/तांदी नृत्य कर कार्यक्रम का लुत्फ उठाया।
पुरातन संस्कृति को संजोए हैं रवांई घाटी के मंदिर
अपनी देव संस्कृति के लिए विश्व विख्यात रवांई घाटी के मंदिरों में लकड़ी पर की गई नक्काशी एक तरह से दुर्लभ ही है। यहां कई ऐसे मंदिर हैं जिनके बारे में बताया जाता है कि ये मध्य काल में बने हैं। उस समय काष्ठकुणी शैली में बने मंदिर आज भी कला का बेजोड़ नमूना पेश करते हैं। ये मंदिर काष्ठ यानी लकड़ी के बने हैं, जिन पर आकर्षक कलाकृतियां उकेरी गई हैं। इनमें मुख्य तौर पर देवदार की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। इतना ही नहीं मंदिरों के अलावा कुछ इमारतों में भी ऐसी कलाकृतियां बनाई गई हैं। काष्ठ कुणी शैली मंदिर व इमारत की सुंदरता ही नहीं दर्शाती, इसके साथ धर्म और इतिहास भी जुड़ा हुआ है। रवांई घाटी के विभिन्न मंदिर में इस तरह की नक्काशी की गई है। वहीं, गंगटाड़ी में राजा रघुनाथ मंदिर, कुपडा गांव में नाग देवता, थान गांव में जमदग्नि ऋषि मंदिर, पोरा गांव में नव निर्मित कपिल मुनि महाराज मंदिर छवि सहित शानदार नक्काशी की गई है। इन सभी मंदिरों के स्तंभों, खिड़कियों, दरवाजों, दीवारों, चौखट, बरामदों व छतों पर भी देवी-देवताओं, पशु-पक्षियों और विभिन्न प्रकार के फूलों की कलाकृतियां बनाई गई हैं। इन मंदिरों में तल से लेकर शिख तक सुंदर नक्काशी देखने को मिलती है।